। ॐ श्री गणेशाय नमः ।
इन्द्र उवाच:
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठेसुरपूजिते ।
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते॥१॥
इन्द्र बोले, श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होनेवाली हे महामाये ! तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाली हे महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है।
नमस्ते गरुड़ारूढे कोलासुर भयंकरि ।
सर्वपाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते॥२॥
गरुड़ पर आरूढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी ।
सर्वदुःख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते॥३॥
सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दुःखों को दूर करने वाली हे देवि महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी भुक्ति मुक्ति प्रदायिनी ।
मंत्र मुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते॥४॥
सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
आध्यंतरहीते देवी आद्य शक्ति महेश्वरी ।
योगजे योग सम्भुते महालक्ष्मी नमोस्तुते॥ ५ ॥
हे देवी। हे आदि-अन्तरहित आदिशक्ति! हे महेश्वरी! हे योग से प्रकट हुई भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।
स्थूल सुक्ष्मे महारोद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते॥ ६ ॥
हे देवि ! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
पद्मासन स्थिते देवी परब्रह्म स्वरूपिणी ।
परमेशी जगत माता महालक्ष्मी नमोस्तुते॥७॥
हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्म स्वरूपिणी देवि ! हे परमेश्वरि ! हे जगदम्ब ! हे महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
श्वेताम्बरधरे देवी नानालङ्कार भूषिते ।
जगतस्थिते जगंमाते महालक्ष्मी नमोस्तुते॥८॥
हे देवि ! तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
।। फल स्तुति ।।
महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रं यः पठेत भक्तिमात्ररः ।
सर्वसिद्धि मवाप्नोती राज्यम् प्राप्नोति सर्वदा॥९॥
जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्मी अष्टकम स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्य वैभव को प्राप्त कर सकता है।
एक काले पठेनित्यम महापापविनाशनम ।
द्विकालम यः पठेनित्यम धनधान्यम समन्वितः॥१०॥
जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो प्रतिदिन दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से संपन्न होता है।
त्रिकालं यः पठेनित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मी भवेनित्यम प्रसंनाम वरदाम शुभाम॥११॥
जो प्रतिदिन तीनों कालों में पाठ करता है, उसके महान शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।
॥ इतिंद्रकृत श्रीमहालक्ष्म्यष्टकस्तवः संपूर्णः ॥