शिव भजन
काशी ये हमारी, तीनों लोकों से है न्यारी,
काशीपति महादेव, सभी देवों से न्यारे हैं।
मुक्तिधाम काशी, जहां मुक्तेश्वर गुरु,
वहां मुक्तेश्वर शिव, निज मुक्ति को पधारे हैं।
गिरी कैलाश से कहीं अधिक तेजोमय,
काशी नगरी के पुण्य भूमि के सितारे हैं।
वहां पे विराजे गंगा, शिवजी के शिष्य,
यहाँ शिवजी विराजमान, गंगा किनारे हैं।
काशी के निवासी करे, अभिमान शिव जी पे,
पाते हैं अभयदान अभयकर से।
प्रलय के समय भी डूबेगी ना काशी,
हमे आश्वासन मिला है ये प्रलयंकर से।
शिव और काशी परीयाय एक दूसरे के,
काशी का अटूट नाता भोलेशंकर से।
काशी आके शिव को ना ढूंढ़ना पड़ेगा,
पता उनका मिलेगा तुम्हें कंकर-कंकर से।
विश्वनाथ सदाशिव भैरव में शिव रूप,
शिव का ही रुद्र रूप वीर हनुमान है।
मंदिर के द्वारे पे बिराजमान दुंदिराज,
गणपति शिव की ओरस संतान है।
शिव के निकट राजे शिवमय पार्वती,
दोनों ही जगत के लिए वरदान है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग देते हैं काशी को ज्योति,
सर्वेश्वर यहाँ सर्वस्थान है।
पंचकोशी पंचतीर्थ परिक्रमा वंदना,
पंचमहादेव का दर्शसुखकारी हैं।
मणिकर्णिका से ये परिक्रमा आरंभ होती,
चक्रपुष्कर्णी की महिमा भारी है।
तारकमंत्र यहां देते है शिव पार्वती,
भक्तों की गति इस मंत्र ने सुधारी है।
आदिशिव आदिशक्ति मातेश्वरी पार्वती,
हमको भी मुक्ति दे ये बिनती हमारी है।
ब्रह्माजी का एक शीश काट के सदाशिव,
दोषमुक्त होने जाने कहाँ-कहाँ भटके।
जहां भी वो पहुँचें कपाल ने ना पिछा छोड़ा,
रहा वो तो शिवजी के हाथ से ही सटके।
यहीं है आनंदवन यहीं है माधवपुरी,
पृथ्वी पे होते हुए पृथ्वी से हटके।
यहीं दोषमुक्त हुए मुक्तेश्वर शिव और,
विश्वनाथ रहे गये काशी में सिमट के।
वरुणा अशी के संगम पे वाराणसी,
विश्वेश्वर शिव की धरा पे राजधानी है।
इसे नगरी है पुराणों में द्वादश नाम,
गंगा की लहरों में जिनकी कहानी है।
संस्कृति साहित्य संगीत का मिलन यहाँ,
नगरी वाराणसी पुराणों से पुरानी है।
भक्तों से अधिक देवी देवता बिराजे,
यहां शिवजी के संग पार्वती भवानी है।
मातृहीन, पितृहीन, गुणहीन, धनहीन,
देहहीन, उदासीन विपिन विहारी है।
शीशगंग, भालचंद्र, नेत्रलाल, कंठव्याल,
भस्मयुक्त,नग्नतन, जटा जूटधारी है।
भूतेश्वर, नागेश्वर, डमरू त्रिशूल धर,
अशुचि का घर बैल उसकी सवारी है।
सत्यम शिवम सुंदरम उसे कहे वेद,
कन्या का तुम्हारे वही शिव अधिकारी है।
भक्तों के भंडार भरे भोले भंडारी शिव,
अन्नपूर्णा कोष यहां अन्न के लुटाती है।
दुर्गति नाशिनी दुर्गा माता है यहां,
हर विपदा से वाराणसी को बचाती है।
चैत्र नवरात्रि में पूजन होता गौरी का,
शरद में नवदुर्गा ये पूजी जाती है।
विश्वनाथ धाम में झलक चारो धाम की है,
पुरिया समस्त शोभा काशी की आगे बढ़ाती है।
विश्वेश्वर ओमकार और केदार इन,
तीन खंडो में काशी शिवजी ने बाँटी है।
नगरी ये शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई,
इंद्रपुरी भी काशी नगरी से नाटी है।
जल नहीं गंगा जी में अमृत प्रवाहित है,
शिवजी की सुरभि से चंदन ये माटी है।
महिमा महान उस भूमि का बखान कौन,
अपने निवास को जो शिव जी ने छांटी है।
गंगा सागर को जाने वाली गंगा मैया,
उतरवाहिनी हुई काशी में आके।
जन्मो के पाप शाप अभिशाप मिट जाए,
चंद्राकर वैष्णवी का दर्शन पाके।
निर्मल धवल जल चौड़ा-चौड़ा पाट यहां,
चौरासी है घाट ऋषिजनः सुता के।
लख चौरासी योनिओ से छुटकारा मिले,
एक बार गंगाजी में डुबकी लगाने से।
छप्पन विनायक जुटाते हैं छप्पन भोग,
अष्ट भैरव अष्ट रक्षक हैं काशी के।
पूरब में वेद व्यास, रामेश्वर पश्चिम में,
उत्तर दक्षिण घर शिव अविनाशी के।
एक विष्णु त्रिभुवन पालते है और यहाँ,
दाता है चौबीस विष्णु यश धन राशि के।
मार्कंड महादेव शूलटंकेश्वर,
काम करे पूर्ण शिव दर्शनाभिलाषी के।