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गणेश भजन
हे रिद्धि सिद्धि के दाता,
भव भय संकट के त्राता,
जो द्वार तुम्हारे आता है,
मुँह माँगा सुख है पाता॥
जय सिद्धि विनायक हे,
जय जय गणनायक हे,
जय मंगलमूर्ति हे,
जय प्रज्ञादायक हे॥
मंगलमूर्ति के दर्शन से,
मन को आये चैन रे,
जिनमें तुम प्रतिबिंबित होते,
धन्य हुए वो नैन रे,
एकदन्तं गजबदन चतुर्भुज,
शत-शत तुम्हे प्रणाम है,
ऐसा दो आशीष तुम्हारा,
ध्यान रहे दिन-रैन रे।
जय सिद्धि विनायक हे,
जय जय गणनायक हे,
जय मंगलमूर्ति हे,
जय प्रज्ञादायक हे॥
मानव तो क्या प्रथम पूज्य,
नित रहे देवताओं में तुम,
सबसे पहले ध्याए जाओ,
सभी प्रार्थनाओं में तुम,
करे स्मरण जो भी उसका,
कार्य सदा निर्विघ्न रहा,
काया जैसे ही विशाल,
मन से हो दाताओं में तुम।
जय सिद्धि विनायक हे,
जय जय गणनायक हे,
जय मंगलमूर्ति हे,
जय प्रज्ञादायक हे॥
भेंट तुम्हें करने आया हूँ,
श्रद्धा के दो फूल मैं,
क्षमा मुझे करना दाता,
करता आया हु भूल मैं,
फिर भी मेरा भाग्य तुम्हारे,
दर्शन जो मैं पा सका,
धन्य हो गया माथें धर कर,
इन चरणों की धूल मैं।
जय सिद्धि विनायक हे,
जय जय गणनायक हे,
जय मंगलमूर्ति हे,
जय प्रज्ञादायक हे॥
हे रिद्धि सिद्धि के दाता,
भव भय संकट के त्राता,
जो द्वार तुम्हारे आता है,
मुँह माँगा सुख है पाता॥
जय सिद्धि विनायक हे,
जय जय गणनायक हे,
जय मंगलमूर्ति हे,
जय प्रज्ञादायक हे॥