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हे शिवशंकर, हे करुनाकर,
सुनिए अरज हमारी॥
भव सागर से पार उतारो,
आए शरण तिहारी।
हे शिवशंकर, हे करुनाकर,
सुनिए अरज हमारी॥
चन्द्र ललाट भभुत रमाये,
कटी बाघंबर धरे।
कर मै डमरू, गले भुजंगा,
नंदी खड़ो द्वारे॥
हे गंगाधर, दर्श दिखा दो,
हे भोले भंडारी।
हे शिवशंकर, हे करुनाकर,
सुनिए अरज हमारी॥
भव सागर से पार उतारो,
आए शरण तिहारी।
हे शिवशंकर, हे करुनाकर,
सुनिए अरज हमारी॥
जनम मरण के तुम हो स्वामी,
हे शंकर अविनाशी।
कण कण मे है रूप तुम्हारा,
हे भोले कैलाशी॥
चरण शरण मे आया जोगी,
रखियो लाज हमारी।
हे शिवशंकर, हे करुनाकर,
सुनिए अरज हमारी॥
भव सागर से पार उतारो,
आए शरण तिहारी।
हे शिवशंकर, हे करुनाकर,
सुनिए अरज हमारी॥
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