राम भजन
भाव के भूखे हैं भगवान,
भाव के भूखे हैं भगवान,
भाव बिना नहीं राम मिले हैं,
भाव बिना नहीं राम मिले,
चाहे करो लाख गुणगान,
भाव के भूखे हैं भगवान॥
एक शबरी थी प्यारी,
प्रभु श्री राम की भक्तन,
संग में मतंग मुनि के,
करती थी राम सिमरण,
राम की सेवा में ही,
तन-मन था सारा लगाया,
ओ रामा रामा रटते,
समय अपना था बिताया,
राम नाम की धुन में रहती,
लीन वो आठों याम,
भाव के भूखे हैं भगवान॥
मतंग मुनि ने देखा,
शबरी को पास बुलाया,
प्रभु से मिलना भी होगा,
प्रेम से उसे बताया,
स्वयं श्री राम आयेंगे,
इसी कुटिया में चलकर,
मुनि ने ले ली समाधि,
शबरी को इतना कहकर,
पल-पल करती रहती शबरी,
प्रभु राम का ध्यान,
भाव के भूखे हैं भगवान॥
प्रेम शबरी का देखों,
प्रभु श्री राम की ख़ातिर,
बेर बागों से चुन कर,
रखती थी मीठे चख कर,
चलता रहा समय का पहिया,
धैर्य ना उसने छोड़ा,
राम उसके चिंतक हैं,
राम पर जिसने छोड़ा,
जर्जर हुई काया शबरी की,
बसें राम में प्राण,
भाव के भूखे हैं भगवान॥
समय वो आ गया जो,
मतंग मुनि ने बताया,
भाग्य शबरी के जगाये,
राम कुटिया में आये,
देख कर भगवन द्वारे,
ऑंखें भर गई शबरी की,
राम जी के चरणों में गिर के,
पाँव अंसुवन से धोये,
मृत शरीर में आ गए जैसे,
लौट के फिर से प्राण,
भाव के भूखे हैं भगवान॥
चरणों में बैठ राम के,
बेर शबरी ने खिलाये,
भाव शबरी का देख के,
बेर झूठे भी खाये,
भाव हो शबरी जैसा,
स्वयं प्रभु आ जाते हैं,
अपने भक्तों को आकर,
दर्श दिखला जाते हैं,
भक्त नहीं है इस दुनिया में,
दूजा शबरी समान,
भाव के भूखे हैं भगवान॥