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कृष्ण भजन
प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर,
भक्त प्रेम के पाले पड़ कर,
प्रभु को नियम बदलते देखा।
अपना मान टले टल जाये,
प्रभु का मान टले टल जाये,
पर भक्त का मान न टलते देखा।
जिसकी केवल कृपा दृष्टि से,
सकल विश्व को पलते देखा।
उसको गोकुल में माखन पर,
सौ-सौ बार मचलते देखा।
अपना मान टले टल जाये,
पर भक्त का मान न टलते देखा।
जिसका ध्यान विरंचि शंभु,
सनकादिक न सम्भलते देखा।
उसको ग्वाल सखा मंडल में,
लेकर गेंद उछलते देखा।
अपना मान टले टल जाये,
पर भक्त का मान न टलते देखा।
जिसके चरणकमल कमला के,
करतल से न निकलते देखा।
उनको ब्रज की कुंज गलिन में,
कंटक पथ पर चलते देखा।
अपना मान टले टल जाये,
पर भक्त का मान न टलते देखा।
जिसकी वक्र भृकुटि के भय से,
सागर सप्त उबलते देखा।
उसको माँ यशोदा के भय से,
अश्रु बिंदु दृग ढ़लते देखा।
अपना मान टले टल जाये,
पर भक्त का मान न टलते देखा,
प्रभु को नियम बदलते देखा।
प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर,
भक्त प्रेम के पाले पड़ कर,
प्रभु को नियम बदलते देखा।