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कृष्ण भजन
इस तन में रमा करना,
इस मन में बसा करना।
वैकुण्ठ तो यहीं है,
नयनों में रहा करना।
इस तन में रमा करना,
इस मन में बसा करना।
बनकर के मोर मोहन,
नाचा करेंगे वन में।
नाचा करेंगे वन में,
तुम श्याम घटाए बन,
इस मन में उड़ा करना।
इस तन में रमा करना,
इस मन में बसा करना।
बनकर के हम पपीहा,
पी-पी रटा करेंगे।
पी-पी रटा करेंगे,
तुम स्वाति बूंद बनकर,
प्यासों पे दया करना।
इस तन में रमा करना,
इस मन में बसा करना।
तेरे वियोग में हम,
दिन-रात गुम रहेंगे।
दिन-रात गुम रहेंगे,
तुम स्वर हम शब्द बन कर,
प्राणों में रमा करना,
बैकुंठ तो यही है,
नयनों में रहा करना।
इस तन में रमा करना,
इस मन में बसा करना।