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शिव भजन
मथुरा, अयोध्या, हरिद्वार,
द्वारका, अवंतिका, कांची
पुरी सात हैं मोक्ष दायिनी
सबसे बढ़कर है काशी
जय विश्वनाथ ओम नमः शिवाय
जय विश्वनाथ ओम नमः शिवाय
जहाँ शिव जी विचरण करते हैं,
उस भूमि को काशी कहते हैं।
ये मोक्ष दायिनी काशी है,
ये पतित पावनी काशी है।
हम काशी के पावन रज कण को,
नित अपने शीश पे रखते हैं,
जहाँ शिव जी विचरण करते हैं,
उस भूमि को काशी कहते हैं।
आनंदवन रुद्र वास है ये,
शिव काशी वाराणसी।
महाश्मशान है तपस्थली,
मुक्त भूमि वाराणसी।
त्रिपुरारी की नगरी है ये,
शिव शम्भू की है ये पुरी,
जगविपदा हारिणी नगरी ये,
गंगा तट धारिणी नगरी,
जहाँ पाप सभी के मिटते हैं,
उस भूमि को काशी कहते हैं,
ये मोक्ष दायिनी काशी है,
ये पतित पावनी काशी है।
हम काशी के पावन रज कण को,
नित अपने शीश पे रखते हैं,
जहाँ शिव जी विचरण करते हैं,
उस भूमि को काशी कहते हैं।
शिव त्रिशूल पे ठहरी हुई है,
परम पावनी ये काशी।
परम भक्ति की खान है ये,
जन मन भावनी ये काशी।
सकल देवता अनगिन रूप से,
नित्य ही पूजन करते,
ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर जी का,
नित दर्शन करते रहते,
जहां विश्वनाथ जी बसते हैं,
उस भूमि को काशी कहते हैं,
ये मोक्ष दायिनी काशी है,
ये पतित पावनी काशी है।
हम काशी के पावन रज कण को,
नित अपने शीश पे रखते हैं,
जहाँ शिव जी विचरण करते हैं,
उस भूमि को काशी कहते हैं।
जय विश्वनाथ ओम नमः शिवाय,
जय विश्वनाथ ओम नमः शिवाय,
जय विश्वनाथ ओम नमः शिवाय,
जय विश्वनाथ ओम नमः शिवाय,
जय विश्वनाथ ओम नमः शिवाय,
जय विश्वनाथ ओम नमः शिवाय।