हिंदू पंचांग के अनुसार ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी होती हैं, एक शुक्ल पक्ष मे तथा दूसरी कृष्ण पक्ष मे। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी कहा जाता है तो अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
योगिनी एकादशी शरीर की समस्त व्याधियों को नष्ट करती है और सुंदर रुप, गुण और यश देती है। यह व्रत रखने वाला व्यक्ति जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त कर लेता है। भगवान श्रीकृष्ण ने खुद युधिष्ठिर को योगिनी एकादशी के महत्व के बारे में बताया था। ऐसा कहा जाता है कि जो इस व्रत को करता है, उसे पृथ्वी पर सभी तरह के सुख प्राप्त होते हैं।
योगिनी एकादशी व्रत का महत्व
योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने पर पापों से मुक्ति मिलती हैं। स्कंद पुराण के अनुसार इस व्रत को करने से मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के चरणों में स्थान प्राप्त होता है। इस दिन व्रत रखने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर का फल प्राप्त होता है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
योगिनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करके स्वच्छ और पीले रंग के वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प करें। एक लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं। भगवान विष्णु की पूजा करते हुए "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का उच्चारण करते हुए पंचामृत से भगवान का स्नान कराएं।
भगवान को वस्त्र, चंदन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, तिल, धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पान, नारियल आदि अर्पित करें। घी का दीपक जलाएं और कपूर से आरती उतारें। इस दिन ‘विष्णुसहस्त्रानम्’ का पाठ करने से सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है। इसके बाद योगिनी एकादशी की कथा का श्रवण या वाचन करें।
पूरे दिन विष्णु जी के नाम का जप एवं कीर्तन करते हुए यह व्रत पूरा करना चाहिए। पीपल के पेड़ की पूजा भी इस दिन अवश्य करनी चाहिये। योगिनी एकादशी के दिन फलाहार करें। इस दिन दान करना भी बहुत कल्याणकारी रहता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर में राजा को संबोधित करते हुए कहा, "हे राजन! आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का नाम योगिनी है। इस दिन व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इस लोक में सुख की प्राप्ति होती है, साथ ही परलोक में मोक्ष की प्राप्ति होती है। हे राज राजेश्वर! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है और इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। मैं तुमसे पुराणों में वर्णन की हुई कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनिए।"
स्वर्गधाम की अलकापुरी नगर में यक्षों के शासक और शिव के भक्त राजा कुबेर का शासन था। कुबेर के सेवकों में से एक हेममाली, देवता की पूजा के लिए मानसरोवर से फूल लाया करता था। हेममाली का विवाह विशालाक्षी नाम की एक खूबसूरत महिला से हुआ था। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प लेने आया फूल इकट्ठा करने के बाद, लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा और अपनी पत्नी के साथ भोग विलास में लिप्त हो गया, इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा।
जैसे-जैसे कुबेर की पूजा का समय नजदीक आता गया, उनका क्रोध बढ़ने लगा, तब क्रोधित होते हुए राजा ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि वे पता लगाएं कि हेममाली अभी तक फूल क्यों नहीं लाया हैं। स्थिति का पता चलने पर सेवक कुबेर के पास वापस आए और उन्हें बताया, कि "हे राजन! हेममाली अपनी पत्नी के साथ भोग विलास में मग्न है।" इस खबर से क्रोधित होकर कुबेर ने हेममाली को बुलाया।
भय से काँपता हुआ हेममाली कुबेर के सामने आया। उसको उपस्थित देखकर कुबेर क्रोध से भर गया और उसके होंठ काँपने लगे। उसने हेममाली को डाँटते हुए कहा, "हे पापी और नीच दुष्ट! तूने देवताओं के स्वामी, मेरे सबसे पूज्य देवता भगवान शिव का अनादर किया है। मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू अपनी पत्नी का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में पहुँचकर कोढ़ी बन जाएगा!"
इस प्रकार कुबेर द्वारा शापित होकर हेममाली पृथ्वी पर गिर पड़ा और कोढ़ी बन गया। मृत्युलोक में आकर हेममाली ने महान दुःख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा। रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का जान अवश्य रहा। घूमते-घूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुँच गया, जो ब्रह्मा जी से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था।
हेममाली वहाँ जाकर उनके पैरों में गिर पड़ा। हेममाली की दयनीय स्थिति देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई। तब हाथ जोड़कर हेममाली ने कहा, "हे मुनि! मैं राजा कुबेर का हेममाली नाम का निजी सेवक था। राजा की पूजा के लिए पुष्प लाना मेरा दैनिक कर्तव्य था। किन्तु एक दिन मैं अपनी पत्नी के साथ भोग विलास में लीन हो गया, जिसके कारण मैं लौटने में विलम्ब कर गया।
फलस्वरूप मैं दोपहर से पहले पुष्प नहीं पहुंचा सका, जिसके कारण कुबेर ने मुझे पत्नी वियोग, कोढ़ तथा मृत्युलोक में कष्ट भोगने का श्राप दे दिया। इस प्रकार मैं अपनी पत्नी से वियोग, कोढ़ी तथा अपने दुखों से त्रस्त होकर कोढ़ी हो गया। मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप मुझे अपने दुखों से मुक्ति का उपाय बताएं।"
जवाब में मार्कण्डेय ऋषि बोले, "चूंकि तुमने मुझसे सच कहा है, इसलिए मैं एक ऐसा व्रत बताता हूं जो तुम्हें मोक्ष दिलाएगा। यदि तुम आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली योगिनी नाम की एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक करोगे तो तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और तुम स्वस्थ हो जाओगे।"
मार्कण्डेय ऋषि के ये ज्ञानपूर्ण वचन सुनकर हेममाली बहुत प्रसन्न हुआ और उसने तुरंत योगिनी एकादशी का व्रत करना शुरू कर दिया। इस व्रत के फलस्वरूप वह पुनः अपने पूर्व स्वरूप में आ गया और अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
कथा का समापन करते हुए भगवान कृष्ण ने कहा, "हे राजन! योगिनी एकादशी की कथा कहने या सुनने से प्राप्त होने वाला पुण्य 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। इस पवित्र दिन पर उपवास करने से सभी पाप मिट जाते हैं, अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है और स्वर्ग प्राप्ति की पात्रता मिलती है।"