शिव भजन
शिव ही सत्य है, शिव ही सुंदर,
शिव ही धूप और छाया है।
शिव की रचना यह जग सारा,
शिव ही सब में समाया है।।
परमपिता शिव अंतर्यामी,
शिव ही कण कण वासी है।
धरती अंबर दसों दिशाएं,
शिव शंभू की दासी हैं।।
ऐसी है महादेव की माया,
पार कोई ना पाया है,
शिव की रचना यह जग सारा,
शिव ही सब में समाया है।।
शिव ही सत्य है, शिव ही सुंदर,
शिव ही धूप और छाया है।
शिव की रचना यह जग सारा,
शिव ही सब में समाया है।।
नाथ निरंजन औघड़ दानी,
नीलकंठ अविकारी हैं।
तन बाघंबर शीश पे गंगा,
छवि परम सुखकारी है।।
हो जाते वो शिव के दीवाने,
जिसने ध्यान लगाया है,
शिव की रचना यह जग सारा,
शिव ही सब में समाया है।।
शिव ही सत्य है, शिव ही सुंदर,
शिव ही धूप और छाया है।
शिव की रचना यह जग सारा,
शिव ही सब में समाया है।।
नंदी पर है शिव की सवारी,
तन पर भस्म रमाए हैं।
भंग धतूरा भोग लगाए,
गले नाग लिपटाए हैं।।
शिव के संग में शक्ति विराजे,
गोद बसे गणराया हैं,
शिव की रचना यह जग सारा,
शिव ही सब में समाया है।।
शिव ही सत्य है, शिव ही सुंदर,
शिव ही धूप और छाया है।
शिव की रचना यह जग सारा,
शिव ही सब में समाया है।।
शिव ही बनाते शिव ही मिटाते,
शिव ही पालन हारे हैं।
महाकाल शिव मंगलकारी,
हर प्राणी के सहारे हैं।।
मात पिता गुरु बंधु सखा बन,
सबसे नाता निभाया है,
शिव की रचना यह जग सारा,
शिव ही सब में समाया है।।
शिव ही सत्य है, शिव ही सुंदर,
शिव ही धूप और छाया है।
शिव की रचना यह जग सारा,
शिव ही सब में समाया है।।