हे राम, हे राम
हे रोम रोम मे बसने वाले राम,
जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी,
मैं तुझ से क्या माँगू ।
आस का बंधन तोड़ चुकी हूँ ,
तुझ पर सब कुछ छोड़ चुकी हूँ ।
नाथ मेरे मै, क्यूं कुछ सोचूं,
तू जाने तेरा काम॥
जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी,
मैं तुझ से क्या माँगू, मैं तुझ से क्या माँगू।
हे रोम रोम मे बसने वाले राम ॥
तेरे चरण की धूल जो पायें,
वो कंकर हीरा हो जाएँ ।
भाग्य मेरे जो, मैंने पाया,
इन चरणों मे ध्यान ॥
जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी,
मैं तुझ से क्या माँगू, मैं तुझ से क्या माँगू।
हे रोम रोम मे बसने वाले राम ॥
भेद तेरा कोई क्या पहचाने,
जो तुझ सा हो वो तुझे जाने ।
तेरे किये को, हम क्या देवे,
भले बुरे का नाम ॥
जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी,
मैं तुझ से क्या माँगू, मैं तुझ से क्या माँगू,
हे रोम रोम मे बसने वाले राम,
जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी,
मैं तुझ से क्या माँगू, मैं तुझ से क्या माँगू,
हे रोम रोम मे बसने वाले राम ॥