रामेश्वरम चार धामों में से एक धाम और भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक पवित्र तीर्थ स्थान है। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। रामेश्वरम को ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है। रामेश्वरम् हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग साढ़े चार मील दक्षिण-पूर्व में है।

रामेश्वरम मंदिर की संरचना :-
रामेश्वरम मंदिर कैसे पहुंचें :-
मदुरै रामेश्वरम से 163 किलोमीटर की दूरी पर है जो रामेश्वरम का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। फ्लाइट से जाना चाहते हैं तो मदुरै के लिए मुंबई, बंगलूरू और चेन्नई से फ्लाइट पकड़ सकते हैं। रामेश्वरम चेन्नई, मदुरै, कोयम्बटूर, त्रिचि,तंजावुर और अन्य महत्वपूर्ण शहरों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
रामेश्वरम कॉरिडोर दुनिया का सबसे लंबा कॉरिडोर है। जो 1000 फुट लंबा, 650 फुट चौड़ा और 125 फुट ऊंचा है। इस मंदिर का कॉरिडोर बेहद खूबसूरत है, जो भारत की प्राचीन कला और सभ्यता को प्रदर्शित करता है। यहाँ तीन विशाल गलियारे है, पहला गलियारा सबसे पुराना है और १२ शताब्दी का है दूसरे गलियारे में १०८ शिवलिंग है तीसरा गलियारा १२१२ स्तम्भ वाला सबसे बड़ा आकर्षित गलियारा है मंदिर में सैकड़ों विशाल खंभे हैं और प्रत्येक खंभे पर अलग अलग तरह की बारीक कलाकृतियां बनी है।
रामेश्वरम में 64 पवित्र स्नानागारों में से एक है "अग्नि तीर्थम " हर दिन हजारों तीर्थयात्री इस पवित्र समुद्र में स्नान करते हैं। यहां स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। इस तीर्थम से निकलने वाले पानी को चमत्कारिक गुणों से भरपूर माना जाता है। जिसमें डुबकी लगाने से सारे दुख दूर हो जाते हैं और बीमारियां भी दूर होती हैं। अग्नि तीर्थम में स्नान के बाद रामेश्वरम मंदिर जाते हैं मंदिर के अंदर परिसर में 22 कुंड (22 कुए) बने हुये है। जिसमे अलग- अलग नदियो से लाया गया जल है।
माना जाता है रामेश्वर मंदिर परिसर के भीतर के सभी कुओं को भगवान राम ने अपने अमोघ बाणों से तैयार किया था। उन्होंने इन कुओं में कई तीर्थों का जल छोड़ा था।इन कुँओं का मीठा जल पीने योग्य भी है। आश्चर्य की बात ये है की पूरे रामेश्वर मे खारा पानी मिलता है। लेकिन इन कुँओं मे मीठा पानी मिलता है। श्रद्धालु पूजा-अराधना से पहले स्नान करते हैं।और अंत में गीले कपड़े बदलने के बाद दरसन (प्रार्थना) के लिए मंदिर जाते हैं
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के बारे प्रचलित कथा :-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण साधारण राक्षस नहीं था। रावण ब्राह्मण कुल से था। वह महर्षि पुलस्त्य का वंशज, वेदों का ज्ञानी ओर शिवजी का बड़ा भक्त भी था। इसलिए श्रीराम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। जिसके पश्चाताप के लिए ऋषियों ने भगवान राम को शिवलिंग स्थापित करके अभिषेक करने का सलाह दी थी। चूंकि द्वीप में कोई मंदिर नहीं था, इसी के चलते प्रभू श्रीराम ने शिवलिंग लाने के लिए श्री हनुमान को कैलाश पर्वत भेजा।
हनुमान जी को कैलाश पर्वत पर शिवलिंग लाने के लिए निकले हुए काफी समय हो जाने के पश्चात जब वह नहीं आए तब माता सीता और श्रीराम ने दक्षिण तट पर स्थित रेत से स्वयं शिवलिंग का निर्माण किया। जो रामनाथ कहलाए, इसे रामलिंग भी कहा जाता है। फिर उसी शिवलिंग की पूजा की। तत्पश्चात हनुमान जी भी कैलाश से शिवलिंग लेकर पहुंच गए। प्रभू श्रीराम के प्रतीक्षा न करने पर दुख हुआ।
हनुमान के इस भाव को देखकर राम ने रामेश्वर की बगल मे ही हनुमान द्वारा लाये शिवलिंग की स्थापना करके उन्हे संतुष्ट किया तब हनुमान जी द्वारा लाए गए शिवलिंग को भी वहां पर स्थापित कर दिया गया। हनुमान जी द्वारा लाए शिवलिंग का नाम वैश्वलिंग रखा गया। तभी से इन दोनों शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसी वजह से रामेश्वरम को रामनाथस्वामी ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर के गर्भगृह में दो लिंग हैं, एक माता सीता और श्रीराम द्वारा रेत से निर्मित जिन्हें कि मुख्य देवता माना जाता है और इन्हें रामलिंगम नाम दिया गया है। जबकि दूसरा लिंग हनुमान द्वारा कैलाश पर्वत से लाया गया, जिसे विश्वलिंगम के नाम से जाना जाता है। भगवान राम के आदेशानुसार हनुमान द्वारा लाए गए शिवलिंग अर्थात् विश्वलिंगम की पूजा आज भी सबसे पहले की जाती है।
मान्यता है कि जो व्यक्ति ज्योतिर्लिंग पर पूरी श्रद्धा से गंगाजल चढ़ाता है और विधि विधान से पूजा करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है, और वह ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्त हो जाता है।
रामनाथजी के मंदिर के पूर्वी द्वार के सामने सीताकुंड है। कहा जाता है कि यही वह स्थान है, जहां सीताजी ने अपना सतीत्व सिद्व करने के लिए आग में प्रवेश किया था। सीताजी के ऐसा करते ही आग बुझ गई और अग्नि-कुंड से जल उमड़ आया। वही स्थान अब ‘सीताकुंड’ कहलाता है।
कहा जाता है कि सीताजी को बड़ी प्यास लगी। पास में समुद्र को छोड़कर और कहीं पानी न था, इसलिए राम ने अपने धनुष की नोक से यह कुंड खोदा था। वह स्थान विल्लूरणि तीर्थ कहलाता है। जहाँ समुद्र के खारे पानी के बीच में से मीठा जल निकलता है
रामेश्वरम से थोड़ी दूर में स्थित जटा तीर्थ कुंड में श्री राम ने लंका में रावण से युद्ध कर अपने बाल धोए थे।
भगवान राम ने यहाँ लंका तक मार्ग तैयार करने के लिए पत्थरों के सेतु (रामसेतु ) का निर्माण करवाया था।यह सेतु तब पांच दिनों में ही बन गया था। परन्तु बाद में प्रभु श्री राम ने विभीषण के कहे अनुसार पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था। आज भी इस ३० मील (४८ कि.मी) लंबे आदि-सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं।
मदुरै रामेश्वरम से 163 किलोमीटर की दूरी पर है जो रामेश्वरम का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। फ्लाइट से जाना चाहते हैं तो मदुरै के लिए मुंबई, बंगलूरू और चेन्नई से फ्लाइट पकड़ सकते हैं। रामेश्वरम चेन्नई, मदुरै, कोयम्बटूर, त्रिचि,तंजावुर और अन्य महत्वपूर्ण शहरों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।