इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है। इस दिन गाय के दूध और उससे बनी चीजों का उपयोग नहीं किया जाता है, सिर्फ बछड़े को ही दूध पिलाया जाता है। महिलाएं अपने अपने बच्चों की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए ये व्रत करती हैं। इस व्रत में भगवान कृष्ण की पूजा भी की जाती है। इस दिन व्रत और पूजा करने से परिवार में सुख और समृद्धि बढ़ती है।
इस दिन उपवास रखकर मिट्टी से बने शेर, गाय और बछड़े की पूजा की जाती है। दूर्वा से पानी के छींटे मारें, तिल के तेल का दीपक जलाएं और चंदन की धूप जला कर रखें। चंदन का तिलक, पीले पुष्प अर्पित कर गुड़ और चने का भोग लगाएं। इस दिन पूजा में चावल का उपयोग नहीं किया जाता है।
चावल की जगह चने की दाल भगवान को चढ़ाई जाती है।बहुला चतुर्थी के दिन श्रीकृष्ण की कथा सुनने से यश और सौभाग्य मिलता है। शाम को भगवान गणेश, गौरी, भगवान शिव, श्रीकृष्ण और बछड़े के साथ गाय की भी पूजा करें। इसके बाद चावल, फूल, दूर्वा, रोली, सुपारी और दक्षिणा दोनों हाथों में लेकर भगवान श्रीकृष्ण को चढ़ाएं।
पूजा संपन्न होने के बाद व्रती महिलाएं चना दाल का सेवन कर सकती हैं। इसके साथ ही भैंस का दूध, घी और दही का उपयोग खाने में कर सकती हैं।
बहुला चौथ व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान कृष्ण की लीलाओं में शामिल होने के लिए सभी देवी देवताओं ने गोप-गोपियों का रूप लेकर अवतार लिया था। कामधेनु नाम की गाय के मन में भी भगवान कृष्ण की सेवा करने का विचार आया। वह अपने अंश से बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा की गौशाला में पहुंच गई।
भगवान कृष्ण को बहुला गाय से बड़ा प्रेम हो गया। एक बार उनके मन में विचार आया की बहुला गाय की परीक्षा लेनी चाहिए। जब बहुला गाय वन में चारा खाने के लिए गई थी। तब भगवान वहां सिंह रूप में प्रकट हो गए। बहुला गाय उसे देखकर काफी ज्यादा भयभीत हो गई। लेकिन, वह हिम्मत करके सिंह से बोली हे वनराज मेरा बछड़ा भूखा है। बछड़े को दूध पिलाकर मैं आपका आहार बनने वापस आ जाऊंगी।
पूजा संपन्न होने के बाद व्रती महिलाएं चना दाल का सेवन कर सकती हैं। इसके साथ ही भैंस का दूध, घी और दही का उपयोग खाने में कर सकती हैं।
बहुला चौथ व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान कृष्ण की लीलाओं में शामिल होने के लिए सभी देवी देवताओं ने गोप-गोपियों का रूप लेकर अवतार लिया था। कामधेनु नाम की गाय के मन में भी भगवान कृष्ण की सेवा करने का विचार आया। वह अपने अंश से बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा की गौशाला में पहुंच गई।
भगवान कृष्ण को बहुला गाय से बड़ा प्रेम हो गया। एक बार उनके मन में विचार आया की बहुला गाय की परीक्षा लेनी चाहिए। जब बहुला गाय वन में चारा खाने के लिए गई थी। तब भगवान वहां सिंह रूप में प्रकट हो गए। बहुला गाय उसे देखकर काफी ज्यादा भयभीत हो गई। लेकिन, वह हिम्मत करके सिंह से बोली हे वनराज मेरा बछड़ा भूखा है। बछड़े को दूध पिलाकर मैं आपका आहार बनने वापस आ जाऊंगी।
इस पर सिंह ने कहा कि सामने आए आहार को कैसे जानें दूं। अगर तुम वापस नहीं आई तो मैं तो भूखा मर जाऊंगा। बहुला गाय ने सत्य और धर्म की शपथ लेकर कहा कि मैं जरूर वापस आउंगी। बहुला की शपथ से प्रसन्न होकर सिंह बने भगवान कृष्ण ने उसे जाने दिया। इसके बाद बहुला अपने बछड़े के पास पहुंची और उसे दूध पिलाकर वापस आ गई।
बहुला गाय की निष्ठा देखकर भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने वास्तविक स्वरूप में आकर कहा कि हे बहुला तुम परीक्षा में सफल हुई। अब से भाद्रपद चतुर्थी के दिन गौ माता के रूप में तुम्हारी पूजा होगी। जो तुम्हारी पूजा करेंगे उसे धन और संतान की प्राप्ति होगी, उसकी संतान हमेशा खुश और स्वस्थ रहेगी।