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कृष्ण भजन
जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है ।
क्यों भटकूँ गैरों के दर पे,
तेरा दरबार काफी है ॥
नहीं चाहिए ये दुनियां के,
निराले रंग-ढंग मुझको,
निराले रंग-ढंग मुझको ।
चली जाऊँ मैं खाटू जी,
तेरा श्रृंगार काफी है ॥
जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है ।
जगत के साज बाजों से,
हुए हैं कान अब बहरे,
हुए हैं कान अब बहरे ।
कहाँ जाके सुनूँ बंशी,
मधुर वो तान काफी है ॥
जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है ।
जगत के रिश्तेदारों ने,
बिछाया जाल माया का
बिछाया जाल माया का ।
तेरे भक्तों से हो प्रीती,
श्याम परिवार काफी है ॥
जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है ।
जगत की झूठी रौनक से,
हैं आँखें भर गयी मेरी,
हैं आँखें भर गयी मेरी ।
चले आओ मेरे मोहन,
दरश की प्यास काफी है ॥
जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है ।
जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है ।
क्यों भटकूँ गैरों के दर पे,
तेरा दरबार काफी है ॥