हिंदू पंचांग के अनुसार ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी होती हैं, एक शुक्ल पक्ष मे तथा दूसरी कृष्ण पक्ष मे। ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। अपरा एकादशी को अचला एकादशी, भद्रकाली एकादशी और जलक्रीड़ा एकादशी भी कहा जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार अपरा एकादशी के दिन भगवान त्रिविक्रम ( वामन ) की पूजा की जाती है। इस व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा के पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के प्रभाव से परस्त्री गमन, झूठी गवाही, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना, झूठा ज्योतिषी बनना, झूठा वैद्य बनना जैसे पाप कट जाते हैं।
भगवान कृष्ण के अनुसार जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाते हैं, वो नरकगामी होते हैं। लेकिन अपरा एकादशी व्रत के प्रभाव से ये भी स्वर्ग की प्राप्ति कर सकते हैं। जो मनुष्य गुरु की निंदा करता हैं वो नर्क के भागी बनते हैं, लेकिन अपरा एकादशी इन्हें भी इनके पापों से मुक्त करती है।
भगवान कृष्ण के अनुसार जो फल मकर संक्रांति पर गंगा स्नान, शिवरात्रि के समय काशी में स्नान, तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्य ग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से या अर्ध प्रसूता गौदान से, गंगा तट पर पितरों का पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही फल अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है।
पद्मपुराण के मुताबिक अपरा एकादशी का व्रत करने से इंसान को प्रेत बनकर कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। भगवान कृष्ण के अनुसार अपरा एकादशी व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। अपरा एकादशी व्रत और भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।
अपरा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करके स्वच्छ और पीले रंग के वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प करें। एक लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं। भगवान विष्णु की पूजा करते हुए "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का उच्चारण करते हुए पंचामृत से भगवान का स्नान कराएं। भगवान को वस्त्र, चंदन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, तिल, धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पान, नारियल आदि अर्पित करें।
घी का दीपक जलाएं और कपूर से आरती उतारें। इस दिन ‘विष्णुसहस्त्रानम्’ का पाठ करने से सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है। इसके बाद अपरा एकादशी की कथा का श्रवण या वाचन करें। अपरा एकादशी की कथा सुनने और पढ़ने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। पूरे दिन विष्णु जी के नाम का जप एवं कीर्तन करते हुए यह व्रत पूरा करना चाहिए। अपरा एकादशी के दिन फलाहार करें।
भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को एक प्रचलित कथा भी सुनाई, जिसे व्रत के दिन साधक को अवश्य सुनना चाहिए। प्राचीन काल में महीध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा राज्य करता था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज क्रूर, अधर्मी और अन्यायी था। वह बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन उसने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसकी देह एक जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु के कारण राजा प्रेत बन गया और उसी पीपल के पेड़ पर रहकर उत्पात करने लगा।
एक दिन धौम्य ऋषि उधर से गुजरे, उन्होंने पेड़ पर प्रेत को देखा और तप के बल से उसकी कहानी जान ली और उसके उत्पात का कारण समझ लिया। इसके बाद ऋषि ने उसे पीपल के पेड़ से उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। इसके अलावा ऋषि ने स्वयं ही राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने के लिए व्रत के पुण्य फल को प्रेत बने राजा को अर्पित कर दिया।
इस पुण्य के प्रभाव से राजा प्रेत योनि से मुक्त हो गया और ऋषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान से स्वर्ग चला गया। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि हे राजन! यह कथा मैंने लोकहित के लिए कही है, इसे पढ़ने और सुनने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।